Monday, September 24, 2018

संघ की बढ़ती स्वीकायरता

आर एस एस के बढ़ते प्रभाव के चलते जो भाजपा विरोधी दल चिंतित रहते हैं वे यह समझे तो बेहतर है कि आखिर किन कारणों से इस संगठन की स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है आम भारतीय कभी न कभी यह सोचता होगा कि आखिर ज्ञान का विपुल भंडार समेटे और सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत कैसे और क्यों अपना प्रभाव खो बैठा हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते हैं कि गत एक सदी में ही अमेरिका चीन जापान दक्षिण कोरिया जैसे देश तेजी से विकास की राह पर आगे बढ़ गए इसमें कोई असहमत नहीं सकता कि किसी भी देश की उन्नति में वहां किस समाज की अहम भूमिका होती है अनुसासन, ईमानदारी ,समर्पण ,सेवा और राष्ट्रभाव का जज्बा ही देश को महान बनाता है आखिर क्या कारण था कि हम मुठी भर विदेशी आक्रांताओ का सामना नहीं कर सकेंक्यों अंग्रेजों ने हम पर लंबे समय तक शासन किया इन प्रश्नों पर आत्मालोकन करें तो पाएंगे कि इसका मूल कारण अनुशासन और एकता का अभाव था अनुशासन जीवन के विकास का मूल तत्व है इसे सही तरह से समझा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने 35 साल कि युवावस्था में ही वह इस निष्कर्ष पर पहुंच गए कि जब तक समाज सुधार की दिशा में ठोस काम नहीं होगा तब तक हम हम ना ब्रिटिश हुकूमत से लड़ पाएंगे और ना ही आजादी की सूरत में स्वतंत्र देश रहने का सलीका सीख पाएंगे ध्यान रहे कि समाज का दबाव व्यवस्था को बदलता है और समाज का आचरण व्यक्ति निर्माण से बदलता है जब तक व्यक्ति समाज के मूल्य आधारित चरित्र निर्माण के लिए काम नही होगा समाज कि चुनोतियाँ का मुकाबला करने में सक्षम नही होगा।पिछले दिनों देश की राजधानी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भविष्य के भारत को लेकर संघ का दृष्टिकोण प्रस्तुत करते समय जब ज्वलंत मामलों पर अपनी राय खुल कर रखी तो उसके केंद्र बिंदु में अनुशासित, विचारवान, राष्ट्रवादी समाज के निर्माण का ही लक्ष्य दिखा हालांकि की मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ का कोई  राजनीतिक मक़सद नही है। फिर भी जब भाजपा के उथान के भाजपा के उत्थान को देखा जाता है तो हर भारतीय के दिमाग में यह बात आती है कि यह सब संघ के अनुसासन में रचे-पगे नेताओं के कारण है भाजपा की व्यापक जन स्वीकृति का कारण यही है कि उसने संघ की अवधारणा को आत्मसात किया इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि भाजपा अक्सर अपने उन नेताओं के कारण विरोधियों के निशाने पर आती है जो अन्य दलों से पार्टी में आए है या फिर जो कभी संघ की सोच  में नहीं ढले संघ प्रमुख ने स्पष्ट किया कि भाजपा समेत विश्व हिंदू परिषद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सेवा भारती विद्या भारती जैसे अनुषंगी के संगठनों उससे निकले अवश्य हैं लेकिन उनकी अपनी स्वतंत्र सोच और निर्णय लेने की क्षमता है शायद इसी कारण संघ की तुलना किसी अन्य संगठन से नहीं की जा सकती संघ प्रमुख ने अपने संबोधन में हिंदू और हिंदुत्व के व्यापक को विस्तार से विश्लेषण किया हिंदू शब्द भारतीय भूभाग में जन्मे लोगों के लिए 9 वीं शताब्दी में चरण में आया और वह बोलचाल की भाषा में काफी बाद में शामिल हुआ हिंदू सभी पूजा पद्धति को स्वीकार करता है उस की संकल्पना में विशिष्ट भाषा व प्रांत नहीं है हिंदुत्व वह विविधतावादी संस्कृति है कि मानव समाज का एक साथ चल सकता है और सब के उननती साथ साथ हो सकता और संघ ईसी  संस्कृति का अनुसरण करते हुए सर्वलोक यूक्त भारत चाहता है।इसके बावजूद यह भी सच है कि उसे इस कारण कटघरे में खड़ा किया जाता है कि वह सिर्फ हिंदुत्व हिंदुओं का हितैषी है मुस्लिम ईसाई आदि से उसका बैर भाव है इस पर मोहन भागवत ने साफ-साफ कहा कि जिस दिन हम कहेंगे कि मुसलमान नहीं चाहिए उस दिन हिंदुत्व भी नहीं रहेगा उनके इस स्पष्ट कथन से संघ को लेकर व्यापक भ्रांतियां बड़ी हद तक दूर हो दूर होनी चाहिए उन्होंने यह कह कर भी मुस्लिम समाज में संघ के प्रतीक कायम पूर्वाग्रह को दूर करने की कोशिश की कि एमएस गोलवलकर ने अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में जो कुछ कहा उसे संघ बंधा नहीं है उनके अनुसार भिन्न समय और परिस्थितियों में जो कुछ कहा गया वह सास्वत नहीं हो सकता और इसीलिए गोलवलकर के विचारों का जो नया संकलन जारी हुआ है उसमें तात्कालिक संदर्भ में कही गई उनकी बातें हटा दी गई है आखिर इससे अधिक साफगोई और क्या हो सकती है मोहन भागवत इससे यह साफ हुआ कि संघ समय के साथ बदलने वाला संगठन है यह किसी से छिपा नहीं है कि संघ तुष्टीकरण की राजनीति का विरोधी है इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए चाहिए क्योंकि ऐसा राजनीतिक रणनीति सविधान भावना के खिलाफ हैसंघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने संबोधन से यह धारणा तो ख़ारिज की ही की भारतीय संविधान के प्रति उसकी अनास्था रही है बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि स्वतंत्र भारत के सारे प्रतीकों में उसकी आस्था है चाहे वो राष्ट्रगान हो या राष्ट्रीय ध्वज उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित बंधुत्व भावना के साथ विविधता में एकता समभाव और एक दूसरे के प्रति सम्मान को हिंदुत्व का सार तत्व बताया कुछ लोग इससे असहमत हो सकते हैं लेकिन सच्चाई है कि हिंदुत्व की विचारधारा के कारण ही भारत की  विशिष्ट है और यहां लोकतंत्र की न्यू गहरी है कांग्रेस समेत अन्य दल संघ को इसलिए पसंद नही करते, क्योंकि वह हिन्दुत्व को भारतियता का पर्याय मंटा हैं ऐसे दल भाजपा के बहाने संघ  को निशाने पर लेते रहते हैं ,लेकिन संघ जैसा अनुशासन या आन्तरिक
लोकतंत्र शायद ही किसी अन्य संगठन या दल में दिखता हो यह उसकी सफलता का आधार हैं

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