Tuesday, September 25, 2018

भारत मे 10 लाख आबादी पर सिर्फ 19 जज (source क़ानून मंत्रालय)

कानून मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में प्रति दस लाख लोगों पर केवल 19 जज हैं. इन आंकड़ों में बताया गया है कि देश में 6000 से ज्यादा जजों की कमी है, जिनमें 5000 से ज्यादा जजों की निचली अदालतों में कमी है.

यह आंकड़ा उस रिपोर्ट का हिस्सा है, जिसे संसद में चर्चा के लिए मार्च में तैयार किया गया था.

रिपोर्ट से संबंधित मुख्य तथ्य:

•   रिपोर्ट के मुताबिक, अधीनस्थ अदालतों में 5748 न्यायिक अधिकारियों की कमी है और 24 उच्च न्यायालयों में 406 वैकेंसी हैं.

•   निचली अदालतों में फिलहाल केवल 16,726 न्यायिक अधिकारी हैं, जबकि वहां 22,474 न्यायिक अधिकारी होने चाहिए थे.

•   उच्च न्यायालयों में जजों की मान्य संख्या 1079 हैं, जबकि वहां केवल 673 जज हैं.

•   सुप्रीम कोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 31 हैं और वहां छह पद खाली हैं. इसी तरह सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और निचली अदालतों में जजों के 6160 पद खाली हैं.

जजों की कमी का मामला:

जजों की कमी का मामला अप्रैल 2016 में उस समय सुर्खियों में आया था जब तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने जजों की नियुक्ति में सरकार की 'निष्क्रियता' की बात कही थी. उन्होंने मुकदमों के अंबार के निपटने के लिए जजों की संख्या 21,000 से बढ़ाकर 40,000 करने की बात कही थी.  उन्होंने इसके साथ ही कहा था कि 1987 से कुछ नहीं बदला है, जब विधि आयोग ने जजों की संख्या प्रति 10 लाख आबादी पर 10 जजों से बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी.

लेकिन बाद में सरकार ने स्पष्ट किया था कि विधि आयोग ने यह भी टिप्पणी की थी कि मुकदमे दाखिल करने की संख्या आर्थिक और सामाजिक स्थितियों से जुड़ी है, जो विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग है.

केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने हाल ही में देश के सभी 24 हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया तेज करने का आग्रह किया था. कानून मंत्री ने 14 अगस्त के पत्र में जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में 2,76,74,499 मुकदमों के लंबित होने का जिक्र करते हुए कहा था कि इसका एक कारण जजों की कमी भी है.

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