बिहार के मुजफ्फरपुर में उगाई जाने वाली ‘शाही लीची’ को हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त हुई है. बौद्धिक संपदा कानून के तहत ‘शाही लीची’ को अब जीआई टैग (जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन) दे दिया गया है.
बिहार लीची उत्पादक संघ ने जून 2016 को जीआई रजिस्ट्री कार्यालय में ‘शाही लीची’ के जीआई टैग के लिए आवेदन किया था. जीआई टैग मिलने से ‘शाही लीची’ की बिक्री में नकल या गड़बड़ी की आशंकाएं काफी कम हो जाएंगी.
शाही लीची की विशेषताएं
• बिहार की लीची की प्रजातियों में चायना, लौगिया, कसैलिया, कलकतिया सहित कई प्रजातियां है लेकिन शाही लीची को श्रेष्ठ माना जाता है.
• यह काफी रसीली होती है. गोलाकार होने के साथ इसमें बीज छोटा होता है.
• यह स्वाद में काफी मीठी होती है. इसमें एक विशेष सुगंध भी होती है.
• बिहार के मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली और पूर्वी चंपारण शाही लीची के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं.
• देश में कुल लीची उत्पादन का आधा से अधिक लीची का उत्पादन बिहार में होता है.
• आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 32,000 हेक्टेयर में लीची की खेती की जाती है. यहां कुल 300 मैट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है.
• बिहार के कुल लीची उत्पादन में से 70 फीसदी उत्पादन मुजफ्फरपुर में होता है. मुजफ्फरपुर में 18 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है.
जीआई टैग (जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन टैग)
• जीआई टैग अथवा भौगोलिक चिन्ह किसी भी उत्पाद के लिए एक चिन्ह होता है जो उसकी विशेष भौगोलिक उत्पत्ति, विशेष गुणवत्ता और पहचान के लिए दिया जाता है और यह सिर्फ उसकी उत्पत्ति के आधार पर होता है.
• ऐसा नाम उस उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी विशेषता को दर्शाता है.
• दार्जिलिंग चाय, महाबलेश्वर स्ट्रोबैरी, जयपुर की ब्लूपोटेरी, बनारसी साड़ी और तिरूपति के लड्डू कुछ ऐसे उदाहरण है जिन्हें जीआई टैग मिला हुआ है.
• जीआई उत्पाद दूरदराज के क्षेत्रों में किसानों, बुनकरों शिल्पों और कलाकारों की आय को बढ़ाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचा सकते हैं.
• ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले हमारे कलाकारों के पास बेहतरीन हुनर, विशेष कौशल और पारंपरिक पद्धतियों और विधियों का ज्ञान है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है और इसे सहेज कर रखने तथा बढ़ावा देने की आवश्यकता है.
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