Thursday, September 13, 2018

Rafel fighter plane राफेल लड़ाकू विमान एक मल्टीरोल फाइटर विमान

भारत ने अपनी वायुसेना को मजबूत करने के लिए वर्ष 2007 में मल्टीरोल नए लड़ाकू विमानों के लिए टेंडर जारी किये थेजिसमें अमेरिका ने एफ-16, एफए-18, रूस ने मिग-35, स्वीडेन ने ग्रिपिन, फ्रांस ने राफेल और यूरोपीय समूह ने यूरोफाइटर टाइफून की दावेदारी पेश की थी. 27 अप्रैल 2011 को आखिरी दौड़ में यूरोफाइटर और राफेल ही भारतीय परिस्तिथियों के अनुकूल पाए गए थे और अंततः 31 जनवरी 2012 को सस्ती बोली व फील्ड ट्रायल के दौरान भारतीय परिस्थितियों और मानकों पर सबसे खरा उतरने के कारण यह टेंडर राफेल को दिया गया था.
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस ने 126 रफेल जेट खरीदने के लिए 12 अरब डॉलर की डील की थी जिसमें एक जेट विमान की कीमत 629 करोड़ रुपये थी. वर्तमान में बीजेपी सरकार एक जेट विमान को खरीदने के लिए 1611 करोड़ रुपये खर्च कर रही है.
रफेल जेट को फ़्रांस की कम्पनी दसॉल्ट एविएशन के द्वारा बनाया जाता है. UPA की सरकार के समय तय हुआ कि फ़्रांस की कम्पनी 18 तैयार विमान देगी और बकाया के 108 विमान भारत में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ बनाये जायेंगे. इस समझौते में यह भी तय हुआ था कि फ़्रांस विमान बनाने की पूर्ण तकनीकी का हस्तांतरण भी भारत को करेगा.
भारत को राफेल डील की जरुरत क्यों पड़ी
जैसा कि सभी को पता है कि भारत हमेशा से लड़ाकू विमानों की खरीद रूस से करता आ रहा है. आज भी भारत की वायुसेना में रूस में बने विमान; मिग-21, मिग-27, सुखोई-30 जैसे विमान शामिल हैं. मिग -21 और मिग-27 की स्क्वाड्रन में गिरावट आई है और उम्मीद है कि 2018 के अंत तक ये पूरी तरह से आउटडेटिड हो जायेंगे. इनकी जगह नई तकनीकी के विमानों को लाना होगा.
ज्ञातव्य है कि भारतीय वायुसेना की ताकत केवल 31 स्क्वाड्रन तक सिमट गयी है. लेकिन भारत को दो मोर्चों पर युद्ध करने के लिए 2027-32 की अवधि तक कम से कम 42 स्क्वाड्रन की जरुरत होगी. ध्यान रहे कि एक स्क्वाड्रन में 12 से 24 के बीच विमान होते हैं.
भारत को अब पांचवी पीढ़ी के विमानों की जरुरत पड़ रही है क्योंकि दुनिया के लगभग सभी देशों के पास उन्नत किस्म के लड़ाकू विमान हैं. यहाँ तक कि पाकिस्तान ने भी चीन से एडवांस्ड पीढी के विमान जेएफ-17 और अमेरिका से एफ-16 खरीद लिए हैं ऐसे में भारत अब पुरनी तकनीकी के विमानों पर ज्यादा निर्भर नहीं रह सकता है.
चिंता की बात है कि भारत ने 1996 में सुखोई-30 के तौर पर आखिरी बार कोई लड़ाकू विमान खरीदा था. इसलिए भारत को नयी पीढ़ी के विमानों को वायुसेना में जल्दी ही शामिल करना होगा. यही कारण है कि भारत को राफेल जैसे अत्याधुनिक फाइटर विमान की सख्त जरुरत है.
राफेल विमान की विशेषताएं इस प्रकार हैं 
राफेल लड़ाकू विमान एक मल्टीरोल फाइटर विमान है जिसे फ़्रांस की डेसॉल्ट एविएशन नाम की कम्पनी बनाती है. राफेल-A श्रेणी के पहले विमान ने 4 जुलाई 1986 को उडान भारी थीजबकि राफेल-C श्रेणी के विमान ने 19 मई 1991 को उड़ान भरी थी. वर्ष 1986 से 2018 तक इस विमान की 165 यूनिट बन चुकी हैं. राफेल A,B,C और M श्रेणियों में एक सीट और डबल सीट और डबल इंजन में उपलब्ध है.
राफेल हवा से हवा के साथ हवा से जमीन पर हमले के साथ परमाणु हमला करने में सक्षम होने के साथ-साथ बेहद कम ऊंचाई पर उड़ान के साथ हवा से हवा में मिसाइल दाग सकता है. इतना ही नहीं इस विमान में ऑक्सीजन जनरेशन सिस्टम लगा है और लिक्विड ऑक्सीजन भरने की जरूरत नहीं पड़ती है.यह विमान इलेक्ट्रानिक स्कैनिंग रडार से थ्रीडी मैपिंग कर रियल टाइम में दुश्मन की पोजीशन खोज लेता है. इसके अलावा यह हर मौसम में लंबी दूरी के खतरे को भी समय रहते भांप सकता है और नजदीकी लड़ाई के दौरान एक साथ कई टारगेट पर नजर रख सकता है साथ ही यह जमीनी सैन्य ठिकाने के अलावा विमानवाहक पोत से भी उड़ान भरने के सक्षम है.
तकनीकी में बेजोड़ है यह विमान 
1. इसकी रफ़्तार 2130 किमी प्रति घंटे है.
2. यह 36 हजार फीट से लेकर 60 हजार फीट तक उड़ान भरने में सक्षम है. इतना ही नहीं यह 1 मिनट में 55-60 हजार फीट पर पहुंच जाता है.
3. यह 3700 किमी. की रेंज कवर कर सकता है.
4. राफेल हवा से हवा में मारक मिसाइलें ले जाने में सक्षम है. 
5. यह 1312 फीट के बेहद छोटे रनवे से उड़ान भरने में सक्षम है.
6. यह 15,590 गैलन ईंधन ले जाने की क्षमता रखता है.
सभी रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि अब जंग उसी देश के द्वारा जीती जाएगी जिसकी वायुसेना में ताकत होगी. थल सेना के द्वारा जंग जीतने के दिन लद गए हैं. ऊपर दिए गए आंकड़े यह सिद्ध करते हैं कि राफेल विमान बहुत ही जबरदस्त लड़ाकू विमान है और अगर भारत को दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन रखना है तो उसे यह विमान जल्दी से जल्दी अपनी वायुसेना में शामिल कर लेना चाहिए.

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