Saturday, December 22, 2018

सब्सिडी क्या होता हैं और ये कितनी प्रकार के होता है  ।

सब्सिडी क्या होता हैं और ये कितनी प्रकार के होता है  ।
-: इस लेख  में विस्तृत रूप में समझिए
सब्सिडी से तात्पर्य (Definition of Subsidy):
सब्सिडी एक प्रकार की वित्तीय मदद है जो कि सरकार द्वारा किसानों, उद्योगों, उपभोक्ताओं (मुख्यतः गरीबों) को उपलब्ध करायी जाती है जिसके कारण वांछित लोगों के लिए जरूरी चीजों के दाम नीचे आ जाते हैं. इस लेख में हम यह बता रहे हैं कि सब्सिडी कितने प्रकार की होती है और भारत सरकार द्वारा हर साल कितने करोड़ रुपये इस सब्सिडी पर खर्च किये जाते है

सब्सिडी के प्रकार (Types of Subsidy):
1. फ़ूड सब्सिडी (Food Subsidy): इस प्रकार की सब्सिडी में सरकार गरीबों के लिए सस्ते दामों पर खाद्यान्न (चावल, गेहूं, चीनी) इत्यादि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से उपलब्ध कराती हैL
2. किसानों के लिए सब्सिडी (Farmer Subsidy): इस प्रकार की सब्सिडी में उर्वरक सब्सिडी, कैश सब्सिडी, ब्याज माफ़ी, वाहन और अन्य उपकरण खरीदने के लिए सब्सिडी आदि शामिल किये जाते हैं l
3. तेल/ईंधन सब्सिडी (Petroleum Subsidy): इस सब्सिडी में गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीने वाले लोगों को सरकार सस्ते दामों पर मिट्टी का तेल उपलब्ध कराती हैl इसके अलावा रसोई गैस, डीजल और पेट्रोल के दामों में भी सब्सिडी सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जाती है l
रोजाना तेल के दाम निर्धारित होने से ग्राहकों और तेल कंपनियों को क्या फायदा होगा?
4. कर सब्सिडी (Tax Subsidy): यह सब्सिडी मुख्य रूप से बड़े-बड़े उद्योग घरानों को प्रदान की जाती है ताकि ये लोग अधिक लागत की हालत में उत्पादन करना बंद ना करें और देश में बेरोजगारी न फैलेl कई बार सरकार आयात और निर्यात पर लगने वाले कर में सब्सिडी भी उद्योग घरानों को उपलब्ध कराती है l
5. धार्मिक सब्सिडी (Religious Subsidy): यह सब्सिडी मुस्लिम समुदाय के लोगों को हज यात्रा करने के लिए और हिन्दुओं को अमरनाथ यात्रा करने के लिए सरकार द्वारा दी जाती है l अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने हिन्दू लोगों को अमरनाथ यात्रा करने के लिए 1 लाख रुपये तक की आर्थिक सब्सिडी देने की घोषणा की है l
आखिर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्लास्टिक के नोटों से क्या फायदा होगा?
6. ब्याज सब्सिडी: इस सब्सिडी के अंतर्गत शिक्षा ऋण पर लगने वाले ब्याज का भुगतान सरकार करती है साथ ही किसानों और उद्योगपतियों का ब्याज भी सरकार द्वारा माफ़ किया जाता है l
सब्सिडी के उद्येश्य: सब्सिडी क




 
















Saturday, December 15, 2018

जानिये देश में आपातकाल कब और क्यों लगाया गया था?

जानिये देश में आपातकाल कब और क्यों लगाया गया था?

HEMANT SINGH

27-NOV-2018 16:20

Indira and Sanjay Gandhi

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन उपबंध दिए गए हैं. आपातकालीन स्थिति में केंद्र सरकार सर्वशक्तिमान हो जाता है और सभी राज्य, केंद्र सरकार के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते हैं.

राष्ट्रीय आपातकाल किसे कहते हैं?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रीय आपातकाल का प्रावधान है. राष्ट्रीय आपातकाल उस स्थिति में लगाया जाता है जब पूरे देश को या इसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण अथवा सशक्त विद्रोह के कारण खतरा उत्पन्न हो जाता है. भारत में पहला राष्ट्रीय आपातकाल इंदिरा गाँधी की सरकार ने 25 जून 1975 को घोषित किया था और यह 21 महीनों तक चला था

आपातकाल लगने से पहले देश का राजनीतिक माहौल

इंदिरा गांधी द्वारा 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने से भारत के बैंकों पर अमीर घरानों का कब्ज़ा ख़त्म होने और ‘प्रिवी पर्स’ (राजपरिवारों को मिलने वाले भत्ते) खत्म करने जैसे फैसलों से इंदिरा की इमेज ‘गरीबों के मसीहा’ के रूप में बन गई थी.

अपने सलाहकार और हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्रीकांत वर्मा द्वारा दिए गए ‘गरीबी हटाओ’ के नारे ने देश में इंदिरा की छवि गरीबों के मसीहा के रूप में पक्का किया था. अब लोगों को लग रहा था कि सिर्फ इंदिरा ही गरीबों के लिए लड़ रही है.

यही कारण है कि जब मार्च 1971 में देश में आम चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी. कुल 518 सीटों में से कांग्रेस को दो तिहाई से भी ज्यादा (352) सीटें हासिल हुई थी.

इस चुनाव में इंदिरा गाँधी भी उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोक सभा सीट से एक लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनी गई थीं. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण को हराया था.

बताते चलें कि राजनारायण उत्तर प्रदेश के वाराणसी के प्रखर समाजवादी नेता थे.उनके इंदिरा गांधी से कई मसलों पर नीतिगत मतभेद थे. इसलिए वे कई बार उनके खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़े और हारते रहे. वर्ष 1971 में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और यहीं से शुरू होता है देश में राजनीतिक उथल पुथल का दौर.

कोर्ट का निर्णय इंदिरा का खिलाफ

राजनारायण के कोर्ट में वकील थे प्रसिद्द वकील  शांतिभूषण. हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. यह मामला राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ नाम से जाना जाता है.

वकील  शांतिभूषण ने सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग सिद्ध करने के लिए यह उदाहरण किया कि प्रधानमंत्री के सचिव यशपाल कपूर ने राष्ट्रपति द्वारा उनका इस्तीफा मंजूर होने से पहले ही इंदिरा गांधी के लिए काम करना शुरू कर दिया था, जो कि सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग का पुख्ता सबूत था.

उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने फैसले में माना कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया इसलिए जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाना अवैध है.

(जज जगमोहन लाल सिन्हा)

अदालत ने साथ ही अगले 6 साल तक उनके कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. ऐसी स्थिति में इंदिरा गांधी के पास राज्यसभा में जाने का रास्ता भी नहीं बचा था. अब उनके पास प्रधानमंत्री पद छोड़ने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. 

हालांकि अदालत ने कांग्रेस पार्टी को थोड़ी राहत देते हुए ‘नई व्यवस्था अर्थात नया प्रधानमन्त्री’ बनाने के लिए तीन हफ्तों का वक्त दे दिया था.

समस्या को हल करने के क्या प्रयास हुए थे?

ज्ञातव्य है कि इस समय देश में ‘इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया’ का माहौल था. ऐसे माहौल में इंदिरा के होते किसी और को प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता था. साथ ही इंदिरा अपनी पूरी पार्टी में किसी पर भी विश्वास नहीं करती थीं.

इस संकट के समय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष डीके बरुआ ने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि अंतिम फैसला आने तक वे कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं और उन्हें प्रधानमंत्री का पद सौंप दें.

पत्रकार इंदर मल्होत्रा के अनुसार, जब प्रधानमंत्री आवास पर यह चर्चा चल रही थी उसी समय वहां संजय गांधी आ गए. उन्होंने अपनी मां को कमरे से बाहर ले जाकर सलाह दी कि वे इस्तीफा न दें. उन्होंने इंदिरा गांधी को समझाया कि यदि उन्होंने प्रधानमंत्री का पद किसी और को दिया तो फिर वह व्यक्ति इसे नहीं छोड़ेगा और आपके द्वारा पार्टी में बनायीं गयी पकड़ ख़त्म हो जाएगी.

इंदिरा गांधी अपने बेटे के तर्कों से सहमत हो गई और उन्होंने तय किया कि वे इस्तीफा देने के बजाय 3 हफ़्तों की मिली मोहलत का फायदा उठाते हुए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी.

इस केस की सुनवाई जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने की थी. जज ने अपने फैसले में कहा कि वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर पूर्ण रोक नहीं लगाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति तो दे दी लेकिन कहा कि वे अंतिम फैसला आने तक सांसद के रूप में मतदान नहीं कर सकतीं.

जयप्रकाश नारायण की भूमिका

कोर्ट की उठापटक के बीच बिहार, गुजरात में कांग्रेस के खिलाफ छात्रों का आन्दोलन भी उग्र हो रहा था. बिहार में इस आन्दोलन को हवा दे रहे थे जयप्रकाश नारायण.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन यानी 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की रैली थी. जयप्रकाश ने इंदिरा गांधी के ऊपर देश में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया और रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता के अंश " सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" का नारा बुलंद किया.

जयप्रकाश ने विद्यार्थियों, सैनिकों, और पुलिस वालों से अपील कि वे लोग इस दमनकारी निरंकुश सरकार के आदेशों को ना मानें क्योंकि कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमन्त्री पद से हटने को बोल दिया है. बस इसी रैली के आधार पर इंदिरा ने आपातकाल लगाने का फैसला किया था. इसके अलावा इन कारणों ने भी इंदिरा को आपातकाल के लिए मजबूर किया था;

1. इंदिरा के खिलाफ पूरे देश में जन आक्रोश बढ़ रहा था. इसमें छात्र और सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट हो गए थे.

2. कोर्ट के आदेश ने इंदिरा की हालात को पंगु बना दिया था क्योंकि इंदिरा अब संसद में वोट नहीं डाल सकती थी और उनको पार्टी के किसी नेता पर भरोसा भी नहीं था.

3. इसके अलावा इंदिरा को लगा कि जयप्रकाश के आवाहन पर सेना तख्ता पलट कर सकती है.

ऊपर दिए गए हालातों में इंदिरा को आपातकाल लगाने का सबसे बड़ा बहाना जयप्रकाश द्वारा बुलाया गया असहयोग आन्दोलन था. इसी आधार पर इंदिरा ने 26 जून, 1975 की सुबह राष्ट्र के नाम अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, कि जिस तरह का माहौल (सेना, पुलिस और अधिकारियों के भड़काना) देश में एक व्यक्ति अर्थात जयप्रकाश नारायण के द्वारा बनाया गया है उसमें यह जरूरी हो गया है कि देश में आपातकाल लगाया जाये ताकि देश की एकता और अखंडता की रक्षा की जा सके.

इस प्रकार देश में पहला राष्ट्रीय आपातकाल 25 जून 1975 में लागू किया गया था जो कि 21 महीने अर्थात 21 मार्च 1977 तक चला था. इस समय देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद थे.

इस तरह इंदिरा गाँधी द्वारा देश में लगाया गया आपातकाल भारत के राजनीतिक इतिहास की एक अमित घटना बन गया है. उम्मीद है कि अब आप ठीक से समझ गए होंगे कि देश में आपातकाल कब और क्यों लगाया गया था.

भारत में देशद्रोह के अंतर्गत कौन कौन से काम आते हैं?

भारत में देशद्रोह के अंतर्गत कौन कौन से काम आते हैं?

HEMANT SINGH

30-JUL-2018 12:58

Sedition laws in India

ऑक्सफोर्ड एडवांस्ड लर्नर डिक्शनरी के अनुसार, देशद्रोह शब्द का अर्थ है, "यदि कोई व्यक्ति "शब्दों या कार्यवाही" के माध्यम से सरकार का विरोध करने के लिए लोगों को भड़काता है तो ऐसा कार्य देशद्रोह की श्रेणी में आता है."

भारत में देशद्रोह कानून का इतिहास

देशद्रोह कानून को भारत में सबसे पहले 1837 में थॉमस मैकॉले द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 113 के माध्यम से पेश किया गया था. अंग्रेजों को इस कानून की जरुरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि भारत के विद्रोही गुट लगातार अंग्रजों के शासन के खिलाफ देश में धरना और प्रदर्शन कर रहे थे. अर्थात अंग्रेज; उनकी हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डालने के लिए देशद्रोह का कानून लाये थे.

ध्यान रहे कि 1860 की मूल भारतीय दंड संहिता में देशद्रोह का कानून मौजूद नहीं था लेकिन 1870 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय दंड संहिता में संशोधन किया और धारा 124 ए को इसमें जोड़ दिया था. इस प्रकार हम कह सकते है कि भारत में देशद्रोह के कानून ने 1870 में जन्म लिया था.

वर्ष 1898 में मैकॉले दंड संहिता के तहत देशद्रोह का मतलब था, ऐसा कोई भी काम जिससे सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर होता हो लेकिन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस परिभाषा में बदलाव किया गया जिसके तहत सिर्फ सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर करने को देशद्रोह नहीं माना जा सकता बल्कि उसी स्थिति में इसे देशद्रोह माना जाएगा जब इस असंतोष के साथ हिंसा भड़काने और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की भी अपील की जाए.

जानें भारत के 9 अजब गजब कानून

देशद्रोह से जुड़े कानून;

मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66ए को निरस्त करते समय साफ किया था कि लोगों को कुछ भी कहने या लिखने की आजादी नहीं है अर्थात संवैधानिक सीमाओं के बाहर लिखी गई बातों के लिए उचित कार्रवाई हो सकती है.

संविधान के जानकार सोली सोराबजी ने कहा है कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं है बल्कि उस विद्रोह के कारण हिंसा और कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो जाए तभी देशद्रोह का मामला बनता है. सोराबजी ने यह भी कहा है कि पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना भी देशद्रोह नहीं है लेकिन भारत के टुक़ड़े होंगे जैसे नारे देशद्रोह की श्रेणी में आते हैं.

भारत में देशद्रोह के फेमस मामले

देश में 2014 से 2017 की अवधि में देशद्रोह के मामलों में 165 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2014 में देशद्रोह के 47 मामले दर्ज किए गए जिसमें 72 फीसदी मामले सिर्फ बिहार-झारखंड में दर्ज है.बिहार, झारखंड में इन आंकड़ें के लिए नक्सलवाद को जिम्मेदार माना जाता है.

भारत में देशद्रोह के कुछ चर्चित मामले इस प्रकार हैं;

1. वर्ष 2016 में जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने के आरोपी कन्हैया कुमार और अन्य पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया लेकिन बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने आरोप सिद्ध ना होने के कारण जमानत दे दी थी.

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2. सितंबर 2012 में काटूर्निस्ट् असीम त्रिवेदी को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के समय साइट पर संविधान से जुड़ी तस्वीरेंपोस्ट करने की वजह से इसी आरोप में गिरफ्तार में किया गया था. हालांकि बाद में उनके ऊपर से देशद्रोह का आरोप हटा लिया गया था.

3. 2010 में अरुंधति रॉय और हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी पर कश्मीर-माओवादियों के पक्ष में एक बयान देने की वजह से देशद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था.

4. वर्ष 2007 में बिनायक सेन पर नक्सल विचारधारा को फैलाने के आरोप में देशद्रोह का मामला दर्ज कर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जमानत मिल गई थी.

कानून के जानकारों का कहना है कि देशद्रोह की परिभाषा काफी व्यापक है और इस कारण इसके दुरुपयोग की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा-196 में प्रावधान किया गया कि देशद्रोह से संबंधित मामले में पुलिस को चार्जशीट के वक्त मुकदमा चलाने के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकार से संबंधित प्राधिकरण से मंजूरी लेना जरूरी है.
आइये जानते हैं कि कौन-कौन से मामले देशद्रोह की श्रेणी में आते हैं; 
1. सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि देश-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठन को बैन कर दिया जाता है. इसके तहत ही माओवादी और दूसरे अलगाववादी संगठनों को बैन किया गया है. आमतौर पर ऐसे संगठनों से संबंध रखनेवालों के खिलाफ देशद्रोह या इससे संबंधित धाराओं के तहत केस दर्ज होता है. इसी कारण हाल के समय में कुछ यूनिवर्सिटीज के प्रोफेसर को भी गिरफ्तार किया गया है.

यह जानना जरूरी है कि अगर कोई संगठन देश-विरोधी है और उससे अनजाने में भी कोई संबंध रखता है, उसके साहित्य को और लोगों तक पहुंचाता है या ऐसे लोगों का सहयोग करता है, ऐसे लोगों के साथ किसी भी तरह की सांठ-गांठ रखता है तो देशद्रोह का मामला बन सकता है. इसलिए लोगों को अनजाने में भी किसी को ऐसे संगठन या ऐसी विचारधारा वाले लोगों से संपर्क नहीं रखना चाहिए. 

2. देश विरोधी गतिविधियों के लिए अपराध के हिसाब से धाराएं लगाई जाती हैं लेकिन देशद्रोह के लिए आईपीसी की धारा-124 ए में कड़े प्रावधान किये गए हैं. इसके लिए उम्रकैद तक हो सकती है. इसके तहत देश के खिलाफ लिखना, बोलना या संकेत देकर या फिर अभिव्यक्ति के जरिये विद्रोह करना या फिर नफरत फैलाना या ऐसी कोशिश करना या ऐसी कोई भी हरकत जो देश के प्रति नफरत का भाव रखती हो, वह देशद्रोह कहलाएगी.

हालाँकि आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) कीधारा-124 A के दायरे में स्वस्थ आलोचना नहीं आती. इस धारा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ फैसले सुनाए हैं और उससे साफ होता है कि कोई भी हरकत या सरकार की आलोचनाभर से देशद्रोह का मामला नहीं बनता, बल्कि उस विद्रोह के कारण हिंसा और कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो जाए तभी देशद्रोह का मामला बनता है.

3. आईपीसी की धारा-121 में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने वालों (आतंकवादी गतिविधियों में शामिल) को सजा दिए जाने का प्रावधान है. अगर कोई शख्स भारत के खिलाफ युद्ध करता है या ऐसी कोशिश करता है या ऐसे लोगों को बढ़ावा देता है तो 10 साल या उम्रकैद से लेकर फांसी तक की सजा हो सकती है.

4. आईपीसी की धारा-122 में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति देश में रहकर, भारत के खिलाफ युद्ध करने की नियत से हथियार जमा करने, बनाने या छुपाने की कोशिश करता है तो आरोपी को दोष साबित होने पर 10 साल तक कैद या उम्र कैद की सजा हो सकती है. ऐसे लोगों का साथ देने वालों के लिए धारा-123 में 10 साल तक की कैद का प्रावधान है.

इस प्रकार ऊपर दिए गए सभी कानूनों में एक बात स्पष्ट है कि सरकार का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करना या बदलाव की मांग करना हर नागरिक का अधिकार है. अर्थात लोगों को संविधान के दायरे में रहकर सरकार की आलोचना करने की पूरी आजादी है, क्योंकि यदि जनता किसी सरकार को चुनती है तो उसकी आलोचना भी कर सकती है. लेकिन देश की सत्ता को गैरकानूनी तरीके से चुनौती देना देशद्रोह की कैटेगरी माना जाएगा.

जानें भारत ‌- पाकिस्तान के बीच कितने युद्ध हुए और उनके क्या कारण थे

जानें भारत ‌- पाकिस्तान के बीच कितने युद्ध हुए और उनके क्या कारण थे

अमन कुमार

भारत से पाकिस्तान वर्ष 1947 में ब्रिटिश शासन से आजाद होने पर बना था. भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की श्रृंखला को भारत–पाकिस्तान युद्ध का नाम दिया जाता है. इन दोनों देशों के बीच कश्मीर मुद्दे के सिवाय 'कच्छ के रण' की सीमा का विवाद भी था. क्या आप जानते हैं कि 1965 में कच्छ के रण में पकिस्तान ने अपनी झड़प शुरू की थी और इस ऑपरेशन का नाम 'डेजर्ट हॉक' रखा था. जंग की जड़ें हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच दुश्मनी और शुरुआत में स्वराज्य रियासतों के स्वभाव में थीं .  इसके अलावा, युद्ध के अन्य कई कारणों में सीमा विवाद, कश्मीर समस्या, जल विवाद और आतंकवाद के मुद्दे पर विवाद रहे हैं. सबसे हिंसक युद्ध 1947-48, 1965, 1971 और 1999 में हुए. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं भारत और पाकिस्तान के बीच के युद और इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ा.

भारत– पाकिस्तान युद्धों के कारण और उनके प्रभाव इस प्रकार हैं–

1. भारत – पाकिस्तान युद्ध 1947- 48

कारण

– भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का केंद्र कश्मीर समस्या थी।

– वर्ष 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ था, मुस्लिम बहुल कश्मीर के हिन्दू शासक महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्र कश्मीर राज्य का सपना देखा था। हालांकि सितंबर 1947 में जब कश्मीर के पश्चिमी हिस्से में मुसलमानों की हत्या की गई, तब राज्य में विभाजन के दंगे भड़क गए। इसकी वजह से राज्य की जनता ने महाराजा के खिलाफ विद्रोह कर दिया और खुद के आजाद कश्मीर सरकार की घोषणा कर दी।

– इस मौके को अवसर के तौर पर लेते हुए पाकिस्तान ने कश्मीर में पाकिस्तानी कबायली (tribal) सेनाओं को भेजा जो राज्य की राजधानी श्रीनगर से सिर्फ पंद्रह मील दूर थी ।

– इस घुसपैठ से चिंतित होकर महाराजा ने भारत से सहायता मांगी। हालांकि, भारत ने उन्हें भारत में विलय करने के संबंधी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने को कहा। महाराजा हरि सिंह ने उस पर हस्ताक्षर किए और नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ कश्मीर के नेता शेख अब्दुल्ला ने इस पर अनुमति दी, भारत ने जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय को स्वीकारा । आखिरकार, भारत ने कश्मीर में अपनी सेना भेजी जबकि पाकिस्तान ने आजाद कश्मीर आंदोलन की सहायता के लिए सैन्य सहायता को भेजा।

प्रभावः

– भारत– पाकिस्तान युद्ध गतिरोध के साथ समाप्त हुआ क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नेहरू ने पाकिस्तान को जम्मू और कश्मीर से अपनी अनियमित सेना को वापस बुलाने हेतु कोशिश करने और उसे मजबूर करने के लिए नव निर्मित संयुक्त राष्ट्र संगठन के माध्यम से राजनयिक साधनों का उपयोग कर आदर्शवादी मार्ग अपनाया। यूएनएससी प्रस्ताव 39 और 47 भारत के पक्ष में नहीं थे और पाकिस्तान ने इन प्रस्तावों को मानने से इनकार कर दिया था।

– इसलिए, पाकिस्तान के नियंत्रण में भारत में जम्मू और कश्मीर का एक हिस्सा है जिसे "पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके)" कहते हैं और पाकिस्तान में भारतीय कश्मीर को "भारत अधिकृत कश्मीर" कहा जाता है।

यह समस्या दोनों देशों के बीच मुख्य मुद्दे में से एक रही है।

2. 1965 का भारत– पाकिस्तान युद्ध

1965 का भारत– पाकिस्तान युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच कई विवादों की वजह से हुआ था ।

कारणः

– भारत के विभाजन में नदी जल बंटवारेको लेकर भी विवाद हुआ था । लगभग सभी नदियों – सिंधु, चिनाब, सतलुज, ब्यास और रावी का पानी भारत से होकर गुजरता है। वर्ष 1948 में भारत ने इन नदियों के पानी को बंद कर दिया था।

– वर्ष 1960 में नेहरू और अयूब खान के बीच हुए सिंधु जल संधि द्वारा इस विवाद का अंत हुआ। इसके बाद पाकिस्तान झेलम, चेनाब और सिंधु नदी का पानी इस्तेमाल कर सकता था जबकि भारत सतलुज, ब्यास और रावी नदियों का।

Source: www.media.licdn.com

– इसके बाद सीमा आयोग ने सीमा विवादको सुलझाने की कोशिश की। वर्ष 1965 में पाकिस्तान के कच्छ सीमा के पास हमला किया जिससे विवाद शुरु हो गया। भारत ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र में उठाया। इसे भारत की कमजोरी समझते हुए पाकिस्तान ने कश्मीर में उपद्रव मचाने की कोशिश की। 5 अगस्त 1965 को पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा (LOC) पर सेना को तैनात कर दिया था।

जानें सर क्रीक विवाद क्या है?

प्रभावः

– पाकिस्तान के जिब्राल्टर अभियान जिसे जम्मू और कश्मीर में भारत के शासन के खिलाफ अनियमित "जिहादी" बलों की घुसपैठ के लिए डिजाइन किया गया था, की वजह से युद्ध शुरु हुआ।

– संयुक्त राष्ट्र के निर्दिष्ट संघर्ष विराम के बाद युद्ध समाप्त हुआ और ताशकंद घोषणा को जारी किया गया।

नोटः ताशकंद घोषणापत्र पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान और भारत के प्रधानमंत्री शास्त्री ने सभी विवादों का द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल निकालने और शांति से जीवन जीने के प्रयास हेतु हस्ताक्षर किया था। इस समझौते पर 10 जनवरी 1966 को हस्ताक्षर किया गया था।

हालांकि, युद्ध के समाप्त होने पर, कई पाकिस्तानी नागरिकों ने सेना के प्रदर्शन को सकारात्मक माना। 6 सितंबर का दिन पाकिस्तान में भारतीय सेना के खिलाफ लाहौर में सफल सुरक्षा की याद में रक्षा दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

ताशकंद घोषणा के बाद दोनों ही देशों का मोहभंग हो गया था और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जेड. ए. भुट्टो ने कहा था कि 'इस्लामिक संस्कृति' को नष्ट करने के लिए 'हिन्दू संस्कृति' को निर्धारित किया गया है।  

– कश्मीर विवाद का हल पर पाकिस्तान ने सख्त रवैया दिखाया।

– पाकिस्तान ने चीन को पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित (Gilgit) में सड़क का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी।

– विवाद गंगा के पानी के इस्तेमाल और फरक्का बांध के निर्माण को लेकर भी हुआ था।

– इन कारणों से 1971 में दोनों देशों के बीच आपसी संबंध सबसे नीचले स्तर पर पहुंच गए, जिसका नतीजा हुआ पूर्वी पाकिस्तान में बेहद अराजकता के बीच आपातकालीन गृहयुद्ध। इसलिए पाकिस्तान के साथ एक और युद्ध की शुरुआत होने को थी 

3. वर्ष 1971 का भारत– पाकिस्तान युद्धः

कारणः

– विभाजन के बाद बंगाल का पूर्वी हिस्सा, पूर्वी पाकिस्तान के तौर पर, पाकिस्तान से जुड़ गया और पाकिस्तान के इन दो हिस्सों के बीच भारत की 1200 मीलों की सीमा पड़ती थी । इसके अलावा, पाकिस्तान की सैन्य सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान पर अधिक ध्यान नहीं दिया और उन पर उर्दू भाषा को थोप दिया।

– संघर्ष की वजह पूर्व बंगाल के शेख मुजीबुर रहमान को प्रमुख न बनाया जाना रहा था। रहमान की पार्टी ने 1970 में हुए चुनावों में 300 सीटों में से 160 सीटें जीती थीं।

– पाकिस्तानी नेता जेड.ए. भुट्टो और राष्ट्रपति याहया खान ने पूर्व बंगाल को अधिकार देने से इनकार कर दिया था।

प्रभाव

– जब पाकिस्तान ने कश्मीर में भारतीय हवाईअड्डों पर हमला किया, तब भारत ने पूर्व और पश्चिम दोनों ही पाकिस्तान पर हमला बोल दिया।

– भारत ने पूर्वी हिस्से पर कब्जा कर लिया जिसे 6 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश नाम के नए देश के नाम से स्वतंत्र घोषित किया गया।

– दोनों ही देश संघर्ष विराम के लिए सहमत हुए और 1972 में जेड.ए.भुट्टो पाकिस्तान के नेता के तौर पर उभरे और मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने।  

– बातचीत भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जेड.ए. भुट्टो के बीच हुई। परिणामस्वरूप जून 1972 में दोनों देशों के बीच शांति और व्यवस्था बहाली हेतुशिमला समझौते पर हस्ताक्षर किया 

Source: 12th NCERT

शिमला समझौते के उद्देश्य हैं–

– भारत द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से विवादों और समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान तलाशेगा और न तो भारत और न ही पाकिस्तान मौजूदा परिस्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश करेंगे।

– दोनों ही देश एक दूसरे के खिलाफ सेना का प्रयोग नहीं करेंगे, न ही सीमा की अखंडता का उल्लंघन करेंगे और न ही एक दूसरे की राजनीतिक स्वतंत्रता में दखल देंगे।

नोटः 1971 की जंग 13 दिनों तक चली थी और इसे इतिहास के सबसे छोटे जंगों में से एक माना जाता है। इससे छोटी जंग अरबों और इस्राइलियों के बीच हुई थी जो सिर्फ छह दिनों तक चली थी।

4. वर्ष 1999 का भारत– पाकिस्तान युद्धः

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कारणः

– जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले और नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान के सैनिकों और कश्मीरी आतंकवादियों की घुसपैठ इस युद्ध की वजह थी।

– लद्दाख की भारतीय सीमा को राज्य के उत्तरी इलाके से अलग करने वाले इस इलाके में घुसपैठ ने भारतीय सेना को चौंका दिया और कारगिल क्षेत्र से दुश्मनों को निकाल बाहर करने के लिए तत्काल ऑपरेशन विजय चलाया गया।

– राज्य के द्रास– कारगिल क्षेत्र की सबसे उंची चोटियों में से एक टाइगर हिल युद्ध के दौरान केंद्र बिन्दु बना था ।

– भारतीय वायु सेना ने अभियान में हिस्सा लिया और अंततः 60 से अधिक दिनों तक चले इस युद्ध में भारत ने टाइगर हिल पर अपना कब्जा जमाया और पाकिस्तानी सेना को उनकी सीमा में वापस भेज दिया।

प्रभावः

– दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता बनाए रखने एवं अपनी जनता की उन्नति एवं समृद्धि के लिए भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ 21 फरवरी 1999 को लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर

भारत मे विजय दिवस 16 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है

क्या आप 1971 में हुए भारत और पाकिस्तान के बीच के युद्ध के बारे में जानते हैं, आखिर बांग्लादेश का गठन कैसे हुआ था? 16 दिसंबर को ही क्यों विजय दिवस मनाया जाता है? भारत ने आखिर बांग्लादेश की पकिस्तान से आजाद होने में मदद क्यों की थी? आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.

1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष था. इसका आरंभ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के चलते 3 दिसंबर, 1971 में पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर रिक्तिपूर्व हवाई हमले से हुआ था. इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन के लिए तैयार हो गई थी.

युद्ध की शुरुआत आखिर हुई कैसे?

युद्ध की प्रष्ठभूमी कैसे तैयार हुई? पाकिस्तान में 1970 के दौरान चुनाव हुए थे, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान आवामी लीग ने बड़ी संख्या में सीटें जीती और सरकार बनाने का दावा किया, परन्तु जुल्फिकार अली भुट्टो (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) इस बात से सहमत नहीं थे, इसलिए उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया था. उस समय हालात इतने खराब हो गए थे की सेना का प्रयोग करना पड़ा. अवामी लीग के शेख मुजीबुर रहमान जो कि पूर्वी पाकिस्तान के थे को गिरफ्तार कर लिया गया. यहीं से पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच दिक्कतें शुरू हो गई थीं. धीरे-धीरे इतना विवाद बढ़ गया की पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन करना शुरू कर दिया था, ये लोग इतने सेना के अत्याचार से पीड़ित हो गए थे कि मजबूरन उनको पलायन करना पड़ा.

भारत में उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी. पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थी भारत में आ गए थे और उन्हें भारत में सुविधाएं दी जा रही थी क्योंकि वे भारत के पड़ोसी देश से आए थे. इन सबको देखते हुए पाकिस्तान ने भारत पर हमले करने की धमकियां देना शुरू कर दिया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर कोशिशें की, ताकि युद्ध न हो और कोई हल निकल जाए शरणार्थी सही सलामत घर को लौट जाएं परन्तु ऐसा हो न सका.

जानें भारत ‌- पाकिस्तान के बीच कितने युद्ध हुए और उनके क्या कारण थे

कैसे भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की मदद की थी और क्यों?


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सबसे पहले भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाया था. आइये देखते हैं कैसे?

ये शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा से लगे भारतीय राज्यों में पहुंच गए थे. ऐसा कहा जाता है कि करीब 10 लाख लोग भारत में शरणार्थी बनकर आ गए थे. ये स्थिति देख कर भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय फौज को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया और दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश शुरू कर दी थी.

तत्कालीन भारतीय थलसेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ की मौजूदगी में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के साथ हुई एक बैठक में इंदिरा ने साफ कर दिया कि अगर अमेरिका पाकिस्तान को नहीं रोकेगा तो भारत पाकिस्तान पर सैनिक कार्रवाई के लिए मजबूर होगा.

भारत के कई राज्यों में शांति भी भंग हो रही थी. इंदिरा गांधी ने पूर्वी पकिस्तान में जो हो रहा था उसको पाकिस्तान का अपना अंदरूनी मामला नहीं कहां क्योंकि इन सबके कारण भारत में शांति भंग हो रही थी. अमेरिका का पाकिस्तान की तरफ समर्थन को देखते हुए इंदिरा गांधी ने 9 अगस्त 1971 को सोवियत संघ के साथ ऐसा समझौता किया जिसके तहत दोनों देशों ने एक दुसरे की सुरक्षा का भरोसा दिया.

इसी युद्ध के दौरान हुआ मुक्ति वाहिनी सेना का जन्म. आइये जानते हैं कैसे?

पूर्वी पाकिस्तान में हालात खराब होते जा रहे थे . पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स, ईस्ट बंगाल रेजिमेंट और ईस्ट पाकिस्तान राइफल्स के बंगाली सैनिकों ने पाकिस्तानी फौज के खिलाफ बगावत करके खुद को आजाद घोषित कर दिया था.

भारत ने भी मदद की और वहां के लोगों को फौजी ट्रेनिंग दी जिससे वहां मुक्ति वाहिनी सेना का जन्म हुआ. यहीं आपको बता दें कि पाकिस्तान के विमानों ने नवंबर की आखिरी हफ्ते में भारतीय हवाई सीमा में दाखिल होना शुरू कर दिया था. इस पर भारत  एन पाकिस्तान को चेतावनी दी परन्तु पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहिया कहां ने 10 दिन के अंदर युद्ध की दमकी दे दी.

भारत के कुछ शहरों में 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी विमानों ने बमबारी शुरू कर दी. भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसी वक्त आधी रात को ऑल इंडिया रेडियो के जरिए पूरे देश को संबोधित किया और कहा कि "कुछ ही घंटों पहले पाकिस्तानी हवाई जहाजों ने हमारे अमृतसर, पठानकोट, फरीदकोट श्रीनगर, हलवारा, अम्बाला, आगरा, जोधपुर, जामनगर, सिरसा और सरवाला के हवाई अड्डों पर बमबारी की है" और इसी प्रकार भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया. युद्ध के तहत इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को ढाका की तरफ कूच करने का हुक्म दे दिया और भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पकिस्तान के अहम ठिकानों और हवाई अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिये.

4 दिसंबर, 1971 को ऑपरेशन ट्राईडेंट भारत ने शुरू किया. इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में समुद्र की और से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर दी और दूसरी तरफ पश्चिमी पाकिस्तान की सेना का भी मुकाबला किया.

कारगिल विजय दिवस के बारे में 7 महत्वपूर्ण तथ्य


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भारतीय नौसेना ने 5 दिसंबर, 1971 को कराची बंदरगाह पर बमबारी कर पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय को तबाह कर दिया था. इसी समय इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को एक नया राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में बनाने का एलान कर दिया था यानी अब बांग्लादेश एक नया राष्ट्र होगा. अब वो पकिस्तान का हिस्सा नहीं बल्कि एक स्वतंत्र राष्ट्र होगा.

क्या आप जानते हैं कि अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में अमरीका और सोवियत संघ दोनों महाशक्तियां शामिल हुई थी. ये सब देखते हुए 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पे हमला किया, उस समय पाकिस्तान के सभी बड़े अधिकारी मीटिंग करने के लिए इकट्टा हुए थे. इस हमले से पकिस्तान हिल गया और जनरल नियाजी ने युद्ध विराम का प्रस्ताव भेज दिया. परिणामस्वरूप 16 दिसंबर 1971 को दोपहर के तकरीबन 2:30 बजे सरेंडर की प्रक्रिया शुरू हुई और उस समय लगभग 93,000 पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था.

इस प्रकार 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश का एक नए राष्ट्र के रूप में जन्म हुआ और पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान से आजाद हो गया.

ये युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है.  इसीलिए देशभर में भारत की पकिस्तान पर जीत के उपलक्ष में 16 दिसंबर को 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1971 के युद्ध में तकरीबन 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और लगभग 9,851 घायल हुए थे.
तो अब आप जान गए होंगे कि भारत ने बांग्लादेश को एक नए राष्ट्र के रूप में उभरने में मदद की थी और पाकिस्तान को युद्ध में हराया था इसलिए अपनी जीत की कामयाबी के रूप में सम्पूर्ण राष्ट्र में विजय दिवस मनाया जाता है.

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Sunday, December 9, 2018

टीपू सुल्तान के बारे में 10 रोचक तथ्य

जन्म: 10 नवंबर 1750

जन्म स्थान: देवनहल्ली, आज के समय में बंगलुरु, कर्नाटक

पूरा नाम: सुलतान फतह अली खान साहब

प्रसिद्ध: मैसूर के राज्य के शासक

पिता: हैदर अली

माता: फातिमा फख्र-उन-निसा

पत्नी: सिंधु सुलतान

मृत्यु: 4 मई 1799

मृत्यु स्थान: श्रीरंगपट्टनम, आज के समय में कर्नाटक

टीपू सुल्तान एक प्रसिद्ध मैसूर साम्राज्य के शासक थे. वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्धों में अपनी बहादुरी और साहस के लिए जाने जाते हैं. उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ अपनी प्रखर लड़ाई के लिए भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है, जिन्होंने सुल्तान के शासन के तहत क्षेत्रों को जीतने की कोशिश की थी. मैंगलोर की संधि, जिसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ दूसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध को समाप्त करने के लिए हस्ताक्षर किए थे, वह आखिरी मौका था जब एक भारतीय राजा ने अंग्रेजों के साथ नियमों को ध्यान में रखकर संधि की थी.

मैसूर के सुल्तान हैदर अली के सबसे बड़े बेटे के रूप में, टीपू सुल्तान 1782 में अपने पिता की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठे थे. शासक के रूप में, उन्होंने अपने प्रशासन में कई नवाचारों को लागू किया और लौह-आधारित मैसूरियन रॉकेट का भी विस्तार किया, जिसे बाद में ब्रिटिश बलों की प्रगति के खिलाफ इस्तेमाल किया गया. उनके पिता के फ्रांसीसी के साथ राजनयिक राजनीतिक संबंध थे और इस प्रकार टीपू सुल्तान को एक युवा व्यक्ति के रूप में फ्रांसीसी अधिकारियों से सैन्य प्रशिक्षण भी मिला था. शासक बनने के बाद, अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने फ्रांसीसी के साथ मिलकर अपने संघर्ष में पिता की नीति को जारी रखा. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, अपने राज्य की पूर्ण रूप से रक्षा की और चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में लड़ते समय उनकी मृत्यु हो गई.

आइये उनकी जीवन शैली और उनके बारे में अन्य रोचक तथ्यों को अध्ययन करते हैं.

1. 10 नवंबर 1750 में टीपू सुलतान का जन्म देवनहल्ली शहर यानी बेंगलुरु, कर्नाटक में हुआ था. इनके पिता हैदर अली दक्षिण भारत में मैसूर साम्राज्य के सैन्य अफसर थे जो कि सन 1761 में मैसूर के वास्तविक शासक के रूप में सत्ता में आये थे. हैदर अली पढ़े लिखे नहीं थे परन्तु तब भी उन्होंने अपने बेटे टीपू सुलतान को शिक्षा दिलवाई.

2. क्या आप जानते है कि 15 साल की उम्र में टीपू सुलतान ने सन 1766 में हुई ब्रिटिश के खिलाफ मैसूर की पहली लड़ाई में अपने पिता का साथ दिया था. हैदर अली सम्पूर्ण दक्षिण भारत में शक्तिशाली शासक बने और टीपू सुलतान ने अपने पिता के कई सफल सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. साथ ही आपको बता दें कि टीपू सुलतान के पिता हैदर अली ने टीपू सुलतान का नाम फतेह अली खान साहब रखा था लेकिन एक स्थानीय संत जिनका नाम टीपू मस्तान औलिया था से प्रभावित होकर उन्हें अकसर टीपू बुलाया जाने लगा. ऐसे टीपू सुलतान नाम पड़ा.

3. टीपू सुलतान को आमतौर पर मैसूर के टाइगर के रूप में जाना जाता है और इस जानवर को उन्होंने अपने शासन के प्रतीक के रूप में अपनाया था. ऐसा कहा जाता है कि एक बार टीपू सुलतान एक फ्रांसीसी मित्र के साथ जंगल में शिकार कर रहे थे. तब वहां बाघ उनके सामने आ गया था. उनकी बंदूक काम नहीं कर पाई और बाघ उनके ऊपर कूद गया और बंदूक जमीन पर गिर गयी. वह बिना डरे, कोशिश करके बंदूक तक पहुंचे, उसे उठाया और बाघ को मार गिराया. तबसे उन्हें "मैसूर का टाइगर" नाम से बुलाया जाने लगा.

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मैसूर राज्य का इतिहास

4. टीपू सुलतान नीतियों में काफी तेज़ थे. उन्होंने अपनी समझदारी के कारण 15 वर्ष की उम्र में ही मालाबार साम्राज्य को हड़पकर नियंत्रण कर लिया था. तब उनके पास सिर्फ 2000 सैनिक थे और मालाबार की सेना काफी अधिक थी, लेकिन तब भी उन्होंने फ़ौज का सामना किया, डरे नहीं और आखिर जीत उनकी हुई.

5. पिता की मृत्यु के बाद टीपू सुलतान मैसूर सम्राज्य के शासक बन गए थे और इसके बाद उन्होंने अंग्रेजों की अग्रिमों की जांच करने के लिए मराठों और मुघलों के साथ गठबंधन कर, सैन्य रणनीतियों पर काम करना शुरू किया था. सन 1784 में द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध को समाप्त करने के लिए अंग्रेजों के साथ मंगलोर की संधि की.

हम आपको बता दें कि शास्स्क के रूप में वह एक काफी कुशल व्यक्ति साबित हुए, उन्होंने अपने पिता की छोड़ी हुई परियोजनाओं जैसे सड़के, पुल, प्रजा के लिए मकान और बंदरगाह इत्यादि को पूरा करवाया, युद्ध में राकेट, लोहे से बनी हुई मैसरियन राकेट और मिसाइल का निर्माण किया. उन्होंने ऐसा अद्भुत सांय बल बनाया जो कि जरुरत पड़ने पर अंग्रेजों को नुक्सान पहुंचा सके.

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6. उन्होंने अपने क्षेत्र का विस्तार किया, कई योजनाएं बनाई. त्रवंकोर पर उनकी नज़र थी जिसके तहत उन्होंने वहां के महाराजा के खिलाफ हमले का शुभारम्भ किया. महाराजा ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से मदद ली और सन 1790 में टीपू सुलतान पर हमला किया. ये लड़ाई तकरीबन दो वर्षों तक चली और सन 1792 में श्रीरंगपट्टनम की संधि हुई हुई जिसके कारण मालाबार और मंगलौर को मिलाकर टीपू सुलतान को कई प्रदेशों को खोना पड़ा.

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कई प्रदेशों को खोने की बाद भी टीपू सुलतान ने दुश्मनी को बनाए रखा. सन 1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठों और निजामों के साथ मिलकर मैसूर पर हमला किया, ये चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध था, जिसमें अंग्रेजों ने मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम पर कब्जा कर लिया और टीपू सुलतान की हत्या कर दी.  

7. क्या आप जानते हैं कि टीपू सुलतान के शासन काल में तीन बड़े युद्ध हुए हैं और तीसरे युद्ध में वे वीरगति को प्राप्त हुए.

1. टीपू सुलतान की पहली लड़ाई द्वितीय आंग्ल-मैसूर थी जिसमें उन्होंने मंगलौर की संधि के साथ युद्ध को समाप्त किया और सफलता हासिल की.

2. तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध टीपू सुलतान की दूसरी बड़ी लड़ाई थी जो कि ब्रिटिश की सेना के खिलाफ थी. यह युद्ध श्रीरंगपट्टनम की संधि के साथ समाप्त हुआ और इसमें टीपू सुलतान की हार हुई थी. परिणामस्वरूप उन्हें अपने प्रदेशों का आधा हिस्सा अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं और साथ ही हैदराबाद के निजाम एवं मराठा साम्राज्य के प्रतिनिधि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए छोड़ना पड़ा.

3. चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध सन् 1799 में हुआ था. यह भी ब्रिटिश सेना के खिलाफ था. इसमें भी टीपू सुलतान की हार हुई और उन्होंने मैसूर को खो दिया और साथ ही उनकी म्रत्यु भी हो गई थी.

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8. टीपू सुलतान सुन्नी इस्लाम धर्म से सम्बन्ध रखते है. उनकी तलवार का वजन लगभग 7 किलो 400 ग्राम है और तलवार पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि आज के समय में उनकी तलवार की कीमत तकरीबन 21 करों रुपए है. क्या आप जानते हैं कि फ्रांस में बनाई गई सबसे पहली मिसाइल के अविष्कार में यदि किसी का सबसे अधिक दिमाग था तो वह स्वयं टीपू सुलतान और हैदर अली थे. उन्होंने जिस रॉकेट का अविष्कार किया था वह आज भी लंदन के एक म्यूजियम में रखा हुआ है. हम आपको बता दें कि अंग्रेज इसे अपने साथ ले गए थे.

9. टीपू सुलतान ने बहुत ही कम उम्र में शूटिंग, तलवारबाजी और घुड़सवारी सीख ली थी और यही कारण था कि उन्होंने अपने पिता का साथ युद्ध में 15 साल की उम्र में दिया था. वे बहुत मेहनती थे. उन्होंने मैसूर में नौसेना के एक भवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके अंतर्गत 72 तोपों के 20 रणपोत और 62 तोपों के 20 पोत आते हैं.

10. टिपू सुल्तान को बागवानी का काफी शौक था. यह इस बात से पता चलता है कि विदेशी गणमान्य व्यक्तियों के साथ उनके अधिकांश पत्राचार हमेशा बीजों और पौधों की नई किस्मों के लिए अनुरोध को लेकर होते थे. उन्हें बैंगलोर में 40 एकड़ लालबाग बॉटनिकल गार्डन की स्थापना के लिए भी जाना जाता है. उन्होंने लंबे समय तक ब्रिटिश हमलों से डेक्कन इंडिया को बचाया और उन्हें उनके द्वारा टिपू साहिब के रूप में संबोधित किया गया.

अंत में आपको बता दें कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने टीपू सुल्तान को दुनिया के पहले युद्ध रॉकेट के नवप्रवर्तनक कहा था. तो अब आपको टीपू सुल्तान के जीवन और उन्होंने कैसे अपने साम्राज्य की स्थापना की के बारे में ज्ञात हो गया होगा.